अगली सुबह देल्ली के लिए निकलना था, और रूट पहले ही निर्धारित हो चूका था - चांदपुर, गजरोला और गढ़ मुक्तेश्वर होते हुए!
ज्यादा जल्दी नहीं निकल पाया जैसा की सोचा था, फिर भी करीब 6 बजे सुबह बाइक उठाई, और चल पड़ा नजीबाबाद से! हलकी सी ठण्ड थी सुबह, और बाइक पे तो और ज्यादा लगती है! मगर मज़ा आ रहा था, खुली सड़क, सड़क किनारे हरे भरे लहलहाते खेत! वाह! मुझे बाइक पे ही घूमना चाहिए! संदीप भैया की टोली में शामिल होना ही पड़ेगा! जो लोग संदीप भैया से वाकिफ नहीं हैं उनके लिए http://jatdevta.blogspot.in/.
बिजनौर में घुसते ही सेंट मरीज़ स्कूल के सामने एक सड़क बायीं और मुडती है, इससे चांदपुर सीधे पहुच जा सकता है, बिना किसी ट्राफिक में फसे! मैं बाएँ मुड़ा और जल्दी ही चाँदपुर पहुच गया! कुछ भूख सी लगी तो एक लेस के चिप्स का हरे वाला पेकेट खरीद लिया, यह मुझे काफी पसंद है, हलकी फुलकी भूख में! मैं सफ़र में खुले खाने से अच्छा पेकेट बंद खाना पसंद करता हूँ, हाँ कोई मशहूर खाने की जगह हो या फिर मुझे यकीन हो की यहाँ का खाना मुझे बीमार नहीं करेगा, तो मैं जरुर खाता हूँ! सफ़र में ख्याल रखना अच्छी बात है, अगर घुमक्कड़ी का पूरा मजा लेना है तो!
खेर जल्दी ही मैं चांदपुर पार कर चूका था! चांदपुर तक सड़क ठीक थक ही थी! मगर चांदपुर से आगे गजरोला तक कही जगह सड़क बन रही थी या उसकी मरम्मत चल रही थी, जिसके चलते मुझे ख़राब रास्ता मिला और कुछ समय भी ज्यादा लगा! पर कुछ किलोमीटर के बाद रास्ता सही हो गया था! गजरोला से देल्ली के लिए मैं शहर के बिच से दाई ओर मुड़ा, तो देखा मस्त हाईवे था, जिसे देखते ही मैं पीछे निकला ख़राब रास्ता भूल गया! गजरोला से ये सीधी सड़क डेल्ही के अक्षरधाम मंदिर के सामने तक आती है! इस हाईवे के बारे में नैनीताल ओर मोरादाबाद जाने वाले तो परिचित होंगे ही! रेड लाइट न की बराबर ओर नॉनस्टॉप! चांदपुर के बाद मैं सीधा गढ़ मुक्तेश्वर रुका!
नेशनल हाईवे 24 पे स्थित गढ़ मुक्तेश्वर गंगा के यहाँ से गुजरने के कारण प्रसिद्ध हैं! यहाँ पर प्रति वर्ष कार्तिक महीने की पूर्णिमा को मेला लगता हाई जिसमे लगभग 8 लाख श्रद्धालु आकर गंगा-स्नान करते हैं! दश्हेरा पे भी यहाँ एक बड़ा मेला लगता हैं!
गढ़ मुक्तेश्वर का नाम मुक्तेश्वर महादेव के मंदिर के कारण पड़ा, जोकि गंगा मैया को समर्पित हैं, जिनकी पूजा यहाँ पे स्थित 4 मंदिरों में होती हैं! यह स्थान अपने 80 सती स्तंभों के लिए भी प्रसिद्ध हैं, जो की प्रत्येक किसी हिन्दू विधवा के सती होने के स्थान के प्रतीक हैं! इन स्थानों पे जाने का समाय नहीं निकाल पाया पर जल्दी ही जाना चाहूँगा!
कुछ देर गढ़ मुक्तेश्वर रुक कर, गंगा जी को प्रणाम करके, बढ़ गया देल्ली की ओर! सड़क बहुत अच्छी होने के कारण जल्दी ही फरीदाबाद पहुच गया!
अब आपके सामने जल्दी ही किसी और यात्रा विवरण के साथ प्रस्तुत होता हूँ! तब तक घुमक्कड़ी जिंदाबाद!
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